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Sanskrit subhashitam

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  • Sanskrit subhashitam

    कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।*
    *अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा॥*
    🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
    भावार्थ : *न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं।*
    🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
    *Neither is any one's friend nor any one's enemy, only for personal purpose become friends and enemies.*
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