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श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम&a

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  • #46
    Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235








    ................................श्रीः
    ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
    **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
    –––––––––––––––––––––––––––---------------
    स मत्कोष्टिभकान् पादपान् पुष्पशालिनः ।
    उद्वहन्नूरुवेगेन जगाम विमलेऽम्बरे ॥ ५२ ॥
    ---------www.brahminsnet.com------------------
    मत्तकोयष्टि..........- கொழுத்த
    भकान्...............- நாரைகளோடு கூடின
    पुष्पशालिनः.......- புஷ்பம் நிறைந்த......
    पादपान्............- வ்ருக்ஷங்களை
    ऊरुवेगेन..........- தொடை வேகத்தால்
    उद्वहन्..............- இழுத்துக்கொண்டு
    विमले...............- நிர்மலமான
    अम्बरे...............- ஆகாயத்தில்
    सः जगाम.........- அவர் சென்றார்.....
    ---------------- End of 52 --------------------



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    • #47
      Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







      ...............................श्रीः
      ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
      **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
      –––––––––––––––––––––––––––---------------
      ऊरुवेगोद्धता वृक्षा मुहूर्तं कपिमन्वयुः ।
      प्रस्थितं दीर्घमध्वानं स्वबन्धुमिव बान्धवाः॥ ५३ ॥
      ---------www.brahminsnet.com------------------
      ऊरुवेगोद्धताः....- தொடைவேகத்தால்
      .................... உயரக்கிளம்பிய
      वृक्षः
      ..................- மரங்கள்
      दीर्घं अध्वनां .....- நெடுவழி
      प्रस्थितं.............- செல்லப்புறப்பட்ட......
      स्वबनधुं...........- தம்சுற்றத்தாரை
      बान्धवाः ..........- உறவினரைப்
      इव .................- போல
      मुहूर्तं ..............- முஹூர்தநேரம்
      कपिं ...............- வானரரின்
      अन्वयुः ............- பின்தொடர்ந்தன.....
      ---------------- End of 53 --------------------



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      • #48
        Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







        ...............................श्रीः
        ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
        **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
        –––––––––––––––––––––––––––---------------
        तदूरुवेगोन्मथिताः सालाश्चानये नगोत्तमाः ।
        अनुजग्मुर्हनूमन्तं सैन्या इव महीपतितम् ॥ ५४ ॥
        ---------www.brahminsnet.com------------------
        तदूरु...,,,,,,,,,.- அவருடைய தொடையின்
        वेगोन्मथिताः..- வேகத்தினால் பிடுங்கப்பட்ட
        सालाः .........- ஆச்சா மரங்களும்
        अन्ये.
        ...........- மற்ற......
        नगोत्तमः च..- நன்மரங்களும்
        महीपतिं .....- மஹீபதியை
        सेन्याः .
        .......- போர்வீரர்கள்
        इव .
        ...........- பின்தொடர்வதுபோல்
        हनूमन्तं ......- ஹநுமாரைப்
        अनुजग्मुः ....- பின்தொடர்ந்து சென்றன..
        ---------------- End of 54 --------------------



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        • #49
          Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







          ...............................श्रीः
          ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
          **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
          –––––––––––––––––––––––––––---------------
          सुपुष्पिताग्रैर्बहुभिः पादपैरन्वितः कपिः ।
          हनुमान् पर्वताकारो बभूवाद्भुतदर्शनः ॥ ५५ ॥
          ---------www.brahminsnet.com------------------
          पर्वताकारः....- மலைபோன்ற
          कपिः...........- வானரரான
          हनुमान् ......- ஹநுமான்
          सुपुष्पिताग्रैः.- நன்கு பூத்துச்செறிந்த......
          बहुभिः........- பற்பல
          पादपैः .......- மரங்களால்
          अन्वितः .....- சூழப்பட்டவராய்
          अद्भुत .....- வியக்கத்தக்க
          दर्शनः .......- தோற்றமுடையவராய்
          बभूव ........- ஆகினார்....
          ---------------- End of 55 --------------------



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          • #50
            Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&







            ...............................श्रीः
            ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
            **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
            –––––––––––––––––––––––––––---------------
            सारवन्तोऽथ ये वृक्षा न्यमज्जन् लवणांभसि।
            भयादिव महेन्द्रस्य पर्वता वरुणालये ॥ ५६ ॥
            ---------www.brahminsnet.com------------------
            अथ...............- பிறகு
            सारवन्तः.......- வயிரமான
            वृक्षाः
            ............- மரங்கள்
            ये
            ..................- எவையோ அவை......
            महेन्द्रस्य........- இந்திரனுடைய
            भयात् .....
            ......- பயத்தினால்
            पर्वताः .
            ..........- லைகளைப்
            इव .
            ...............- போல
            लवणांभसि ....- உப்புநீருள்ள
            वरुणालये.......- ஆழ்கடலில்
            न्यमज्जन्........- வீழ்ந்து மூழ்கின....
            ---------------- End of 56 --------------------



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            • #51
              Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







              ...............................श्रीः
              ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
              **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
              –––––––––––––––––––––––––––---------------
              स नानाकुसुमैः कीर्णः कपिः साङ्कुरकोरकैः।
              शुशुभे मेघसङ्काशः खद्योतैरिव पर्वतः॥ ५७ ॥

              ---------www.brahminsnet.com------------------
              मेघसङ्काशः.......- மேகம் போன்ற
              सः कपिः..........- அந்த வானரர்
              नानाकुसुमैः
              ....- பல்வகைமலர்களாலும்
              सांकुरकोरकैः
              ..- குருத்து,மொட்டுகளாலும்......
              खद्योतैः...........- மின்மினிப்பூச்சிகளால்
              कीर्णः ......
              ......- வியாபிக்கப்பட்ட
              पर्वतः .
              ...........- மலை
              इव .
              ...............- போல
              शुशुभे ...........- விளங்கினார்
              ---------------- End of 57 --------------------



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              • #52
                Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                ...............................श्रीः
                ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                –––––––––––––––––––––––––––---------------
                विमुत्त्कास्तस्य वेगेन मुक्त्वा पुष्पाणि ते द्रुमाः ।
                अवाशीर्यन्त सलिले निवृत्ताः सुहृदो यथा ॥ ५८ ॥

                ---------www.brahminsnet.com------------------
                तस्य.............- அவனுடைய
                वेगेन............- வேகத்தால்
                विमुक्ताः
                .....- விடுபட்ட
                ते द्रुमाः........- அந்த மரங்கள்......
                पुष्पाणि.......- புஷ்பங்களை
                मुक्त्वा ....
                ....- உதிர்த்து
                निवृत्ताः .
                .....- வழிவிட்டுத் திரும்பி
                सुहृदः यथा
                .- நண்பரைப் போல
                सलिले ........- நீரில்
                अवाशीर्यन्त.- வீழ்ந்து பரவின.
                ---------------- End of 58 --------------------



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                • #53
                  Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                  ...............................श्रीः
                  ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                  **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                  –––––––––––––––––––––––––––---------------
                  लघुत्वेनोपपन्नां तद्विचित्रं सागरेऽपतत् ।
                  द्रुमाणां विविधं पुष्पं कपिवायुसमीरितम् ॥ ५९ ॥

                  ---------www.brahminsnet.com------------------
                  द्रुमाणां..............- மரங்களின்
                  विचित्रं .............- பலவர்ணமுள்ளதும்
                  विविधं..........- விதவிதமானதும்......
                  लघुत्वेन उपपन्नं- மிகலகுவானதும்
                  कपिवायुसमीरितं
                  - வானரரின் காற்றினால்
                  ...........................சிதறுண்ட
                  तत् ..............
                  .....- அந்த
                  पुष्पं
                  .................- புஷ்பம்
                  सागरे ...............-
                  ஸமுத்திரத்தில்
                  अपतत्..............- விழுந்தது.
                  ---------------- End of 59 --------------------



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                  • #54
                    Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                    ...............................श्रीः
                    ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                    **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                    –––––––––––––––––––––––––––---------------
                    ताराचितमिवाकाशं प्रबभौ स महार्णवः ॥ ६० ॥
                    पुष्पौघेणानुबद्धेन नानावर्णेन वानरः।
                    बभौ मेघ इवोद्यन् वै विद्युद्गणविभूषितः ॥ ६१ ॥

                    ---------www.brahminsnet.com------------------
                    सः...............- அந்த
                    महार्णवः ........- பெருங்கடல்
                    ताराचितं......- நக்ஷத்திரங்கள் நிரம்பிய......
                    आकाशं इव
                    .- ஆகாசம் போல
                    प्रबभौ ........- திகழ்ந்தது
                    अनुबद्धेन ...
                    ..- பின்தொடர்ந்து மேலேபடிந்த
                    नानावर्णेन
                    ....- பற்பலநிறமுள்ள
                    पुष्पौघेण .......-
                    மலர்க்குவியலால்
                    विद्युद्गण ......- மின்னல்கொடிகளால்
                    विभूषितः.....- அலங்கரிக்கப்பட்ட
                    उद्यन्............- மேலெழுந்த
                    मेघः इव......- மேகம் போலவே
                    वानरः बभौ वै.- வானரர் விளங்கினர்.
                    ---------------- End of 61 --------------------



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                    • #55
                      Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                      ...............................श्रीः
                      ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                      **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                      –––––––––––––––––––––––––––---------------
                      तस्य वेगसमाधूतैः पुष्पैस्तोयमदृश्यत ।
                      ताराभिरभिरामाभिरुदिताभिरिवाम्बरम्॥ ६२ ॥

                      ---------www.brahminsnet.com------------------
                      तस्य..............- அவருடைய
                      समाधूतैः ........- விசையால் சிதறுண்ட
                      पुष्पैः.............- பூக்களால்......
                      तोयं
                      .............- ஜலம்
                      अभिरामाभिः.- மிக அழகுற்று
                      उदिताभिः ..
                      ..- உதித்த
                      ताराभिः
                      .......- நக்ஷத்திரங்களினால்
                      अम्बरम् .......-
                      ஆகாயம்
                      इव ..............- போல
                      अदृश्यत......- காணப்பட்டது.
                      ---------------- End of 62 --------------------



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                      • #56
                        Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                        ...............................श्रीः
                        ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                        **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                        –––––––––––––––––––––––––––---------------
                        प्रचकर्ष महामेघं समुपोद्धातविद्युतम् ।
                        प्रबलः कपिराजस्य वायुर्मार्गे विनिस्सृतः॥ ६३ ॥

                        ---------www.brahminsnet.com------------------
                        कपिराजस्य...- வானரச்ரேஷ்டருடைய
                        मार्गे .............- வழியில்
                        विनिःसृतः....- புறப்பட்ட....
                        प्रबलः
                        ........- பெரிய
                        वायुः...........- காற்று
                        समुपोद्धात
                        ..- அடிக்கடிஉண்டான
                        विद्युतं
                        ......- மின்னலோடுகூடிய
                        महामेघं .....-
                        பெருமேகத்தை
                        प्रचकर्ष ......- இழுத்தது.
                        ---------------- End of 63 --------------------



                        [skbg]


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                        • #57
                          Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                          ...............................श्रीः
                          ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                          ****प्रथमः सर्गः। १ ।।
                          –––––––––––––––––––––––––––---------------
                          समुत्पतितमेघस्य समुद्धूतजलस्य च ।
                          सममासीत्तदा रूपं सागरस्याम्बरस्य च॥ ६४ ॥

                          ---------www.brahminsnet.com------------------
                          समुत्पतित....- உயரேஎழுந்த
                          मेघस्य ...........- மேகத்தினுடைய
                          अम्बरस्य च..- ஆகாசத்தினுடையவும்
                          समुध्दूत......- ஓங்கிஎழுந்த....
                          जलस्य
                          .......- ஜலத்தினுடைய
                          सागरस्य च- ஸமுத்திரத்தினுடையவும்
                          रूपं ..........- தோற்றம்(ங்கள்)
                          तदा............- அப்பொழுது
                          सममं
                          ........- ஸமமானதாக
                          आसीत् .....- இருந்தது.
                          ---------------- End of 64 --------------------



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                          • #58
                            Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                            ...............................श्रीः
                            ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                            **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                            –––––––––––––––––––––––––––---------------
                            तस्याम्बरगतौ बाहू ददृशाते प्रसारितौ ।
                            पर्वताग्राद्विनिष्क्रान्तौ पञ्चास्याविव पन्नगौ॥ ६५ ॥

                            ---------www.brahminsnet.com------------------
                            तस्य...............- அவருடைய
                            अम्बरगतौ .....- ஆகாசமார்கத்தில்
                            प्रसारितौ........- நீட்டப்பட்டிருந்த
                            बाहू..............- இரு கைகளும்....
                            पर्वताग्रात्
                            .....- மலைஉச்சியிலிருந்து
                            विनिष्क्रान्तौ...- வெளிக்கிளம்பும்
                            पञ्चास्यौ ........- ஐந்துதலையுடைய
                            पन्नगौ............- இரு நாகங்கள்
                            इव
                            ...............- போல
                            ददृशाते ........- காணப்பட்டன.
                            ---------------- End of 65 --------------------



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                            • #59
                              Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                              ...............................श्रीः
                              ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                              **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                              –––––––––––––––––––––––––––---------------
                              पिबन्निव बभौ चापि सोर्मिमालं महार्णवम् ।
                              पिपासुरिव चाकाशं ददृशे स महाकपिः॥ ६६ ॥

                              ---------www.brahminsnet.com------------------
                              सः................- அந்த
                              महाकपिः .....- வானரச்ரேஷ்டர்
                              सोर्मिमालं......- அலைகள் செறிந்த
                              महार्णवं अपि.- பெருங்கடலையும்....
                              पिबन् इव
                              .....- பானம் செய்பவர் போல
                              बभौ..............- விளங்கினார்
                              आकाशं च ...- ஆகாசத்தையும்
                              पिपासुः.........- பானம் செய்ய
                              इव च
                              ..........- விரும்புவார் போல
                              ददृशे ...........- காணப்பட்டார்.
                              ---------------- End of 66 --------------------



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                              • #60
                                Re: श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्ड&#235







                                ...............................श्रीः
                                ॥ श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् – सुन्दरकाण्डम्॥
                                **********प्रथमः सर्गः। १ ।।
                                –––––––––––––––––––––––––––---------------
                                तस्य विद्युत्प्रभाकारे वायुमार्गानुसारिणः ।
                                नयने विप्रकाशेते पर्वतस्थाविवानलौ॥ ६७ ॥

                                ---------www.brahminsnet.com------------------
                                वायुमार्ग........- காற்றின் மார்கத்தை
                                अनुसारिणः ..- தொடர்ந்து செல்கின்ற
                                तस्य.............- அவருடைய
                                विद्युद्.........- மின்னல்....
                                प्रभाकारे
                                .....- ஒளிக்கு நிகரான
                                नयने............- கண்கள் இரண்டும்
                                पर्वतस्थौ .....- மலைமேல் எரிகின்ற
                                अनलौ.........- தீக்கள்
                                इव
                                .............- போல
                                विप्रकाशेते...- விளங்கின.
                                ---------------- End of 67 --------------------



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